विश्व युद्ध में उस समय एक सैनिक के चेहरे पर दहशत छा गयी, जब उसने अपने सबसे अच्छे दोस्त को युद्ध में गिरते हुए देखा. वो अपनी सेना के द्वारा बनायीं गयी सुरक्षा स्थल पर, खुदे हुए गड्ढो में डटा हुआ था. उसने अपने lieutenant से पूछा, की क्या वह अपने दोस्त को बचाने के लिए जा सकता है.
“अगर तुम चाहते हो, तो जा सकते हो.” lieutenant ने कहा, “पर मुझे नहीं लगता तुम्हारा वहाँ जाना ठीक है. तुम्हारा दोस्त शायद अबतक मर चुका होगा. और तुम अपनी जिंदगी भी गवा सकते हो.”
सैनिक ने उसकी बातो को अनसुना किया. और किसी भी प्रकार के कवच के बगैर, किसी चमत्कारिक ढंग से जा पहुंचा. गोलियों की बरसात के बिच में से वो किसी तरह अपने दोस्त को ले तो आया. पर खुद भी थोडा घायल हो गया.
जब वो अपनी सेना के पास पहुंचा तो उसके ऑफिसर ने उसके दोस्त की जाँच करते हुए कहा, “मैंने कहा था न, इससे कुछ फ़ायदा नहीं होगा. कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम्हारा दोस्त मर चुका है.”
“मैं जानता हूँ, फिर भी इससे बहुत फर्क पड़ा है सर”, उस सैनिक ने कहा.
“क्या मतलब तुम्हारा? फर्क पड़ा है?” ऑफिसर ने कहा “तुम्हारा दोस्त तो मर चुका है.”
“हाँ सर” उसने कहा “पर जब मैं वहाँ पहुंचा था. वो जिंदा था. और मुझे तस्सली इस बात से है की जब मैं वहाँ पहुंचा. तो उसने मुझसे कहा “जीम… मुझे पता था तुम जरुर आओगे..”
कई बार जिंदगी में, ऐसे मौके आ जाते है. जब हमे ऐसे फैसले लेने पड़ते है जिनका दूसरों के लिए कोई मूल्य होता ही नहीं है.
पर क्या हमे वो महत्वपूर्ण लगती है या नहीं, ये सबसे अधिक मायने रखता है.