समय से पहले सुधर लें बुरी आदतें|
एक व्यापारी था! वह जितना कर्मठ, मिलनसार, विनर्म और व्यवहार कुशल था, उसका बेटा उतना ही अकर्मण्य, अहंकारी और जड़ बुद्धि था. उसे सुधारने के व्यापारी के सारे प्रयत्न विफल रहे. उसने इसका जिक्र उससे मिलने आये अपने मित्र से किया तो वो बोला, “अपने बेटे को कुछ दिन मेरे साथ रहने के लिए भेज दो. मुझे विस्वास है की में उसे ठीक राह पर अवश्य ला पाऊंगा”.
व्यापारी पुत्र पहुंचा तो मित्र नेअच्छे व्यवहार से उसे अपने विश्वास में ले लिया. फिर एक दिन उसे अपने बगीचे में ले गया. वहां उसने लड़के से एक फुट एक पौधे को उखाड़ने के लिए कहा. लड़के ने आसानी से उसे उखाड़ दिया. इसी प्रकार उसने पिता के मित्र के कहने पर थोडा जोर लगाकर तीन फुट के पौधे को उखाड़ा. छह फुट के पौधे को उखाड़ने के लिए उसे काफी जोर आजमाइश करनी पड़ी. अंत में वह लड़के को दस फुट के पौधे के पास ले गया और उसे उखाड़ने को कहा, किन्तु लड़के की सारी ताकत विफल हो गयी और वह पौधा नहीं उखाड़ पाया.
तब उसने लड़के को समझाया, “बेटे! जब हम किसी बुरी आदत में पड़ जाते हैं तो आरंभ में उसे दूर कर लेना आसान होता है, जैसे तुमने शुरुआत के दो पौधे सरलता से उखाड़ लिए. लेकिन जब हम उस आदत को नहीं छोड़ते तो उसके जड़ें शेष दो पौधों के सामान गहरी हो जाती है और फिर उसे छोड़ना कठिन हो जाता है”. लड़का बात का मर्म समझ गया और उसने स्वं को सुधार लिया.
कुप्रवृतियों को आचरण का अंग बनने से पूर्व दूर कर लेना चाहिए, अन्यथा ये व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक छति का कारण बनती हैं।